कामी खलती है, कोई साथ चलने वाला हो।
फिर सोचता हूं, साथ चलने वाला हो?
- सानु कुमार | 4 दिसंबर 2022
तुम गए क्या ?
कल ही गए क्या ?
चल गए या चल दिए, बस यही सोचता रहा।
चलो, चल गए या चल दिए, अब क्या ही कहना,
थोड़ी मिलने की थी ख्वाहिश तुमसे,
थोड़े वक्त गुजारने थे मिलकर तुमसे
करनी थी चन्द बातें तुमसे,
उदास हू, ये भी क्या बताऊं तुमसे।
अंजाने मे मिले थे, इसलिए अंजान समझ कर नहीं मिले क्या?
तुम चले गए क्या?
कल ही गए क्या?
- सानु कुमार | 8 दिसंबर 2022
बहुत जी चाहता है, फुर्सत से मिलने का तुमसे।
बारिश में साथ चले क्या, फिर से ?
क्या तुम्हें अब भी इंतजार है क्या ?
हम जब पहली बार मिले थे वैसा वाला,
अब भी प्यार है क्या ?
- सानु कुमार | 19 नवंबर 2022
चन्द शब्दों से मिले थे ,
चार बातो में बस रह कर ही रह गए।
मिलना बस तुमसे ही तो था,
इंतजार में ही बस रह गए।
कुछ बीती बातो से जो सीखा है,
वो क्या ही बताऊ तुमसे।
चलो ये तय कर लिया मैने।
तुम्हारे ना होने पर, इंतज़ार तुम्हारा ही हो,
कम से कम तुम्हारा मुझपर होने का इशारा तो हो।
- सानु कुमार | 7 दिसंबर 2022
अक्सर शाम के ख्याल में तुम याद आती हो।
फिर सोचता हूं ख्याल ही तो है, शाम ही तो है,
ये भी गुजर जाएगा।
- सानु कुमार | 22 नवंबर 2022
आसमान आज भी नीला है,
उम्मीद आज भी इंतजार जैसा है।
बस फ़र्क इतना है, पहले जैसी फ़िकरी तुम नहीं,
तुम्हारी फिकरी यादो का बस सहारा है।
ये जो लिबास है, जो कभी हम दोनों का हुआ करता था,
अब ये बस तुम्हारा है।
- सानु कुमार | 26 नवंबर 2022
आपका इंजर था इंतजार ही रह गया।
अंजाने में मिले थे आप,
जाने अंजाने में अच्छे लगने लगे आप।
अब और किसी के साथ देखता हूं तो,
थम सा जाता हूं, यूँ ही बस देख कर चला जाता हूँ,
फ़िर से देखने के इंतज़ार में।
मिलने का इंतजार तो बस इंतजार रह गया,
शायद जाने अनजाने में आपसे प्यार हो गया।
- सानु कुमार | 25 नवंबर 2022
शायद आगे बढ़ चुका हूं।
तुम्हारे इंतजार के सहारे से,
या दरबदर बहने से,
या फ़िर अपनी नाराजगीयो के सहारे से।
शायद तुमसे मिलने के बहाने अब नहीं आते। शायद आगे बढ़ चुका हूं, किसी और के सहारे से, अब तुम्हारे, इशारे नहीं आते।
हाँ अब आगे बढ़ चुका हूं,
तुम अब याद नहीं आते।
शायद आगे बढ़ चुका हूं, तुम्हारे इंतजार के सहारे से।
- सानु कुमार | 30 नवंबर 2022
चन्द शब्दों से मिले थे, चार बातो में बस रह कर ही रह गए।
मिलना बस तुमसे ही तो था, इंतजार में ही बस रह गए।
कुछ बीती बातो से जो सीखा है, वो क्या ही बताऊ तुमसे।
चलो ये तय कर लिया मैने ।
तुम्हारे ना होने पर, इंतज़ार तुम्हारा ही हो,
कम से कम तुम्हारा मुझपर होने का इशारा तो हो ।
- सानु कुमार । 10 दिसंबर 2022
लिखना नहीं आता था, तब लिखना चाहता था।
अब जब लिखने लगा, तो इस बात से डर लगता है, अभी तो बस चार पन्ने लिखा हूं, और कितने लिखूंगा।
बस इस बात से डर लगता है की, अब शब्द कम पड़ गए हैं, और जज्बात है उससे काफी ज्यादा।
इस बात से डर लगता है की, अभी तो बस चार पन्ने लिखा हूं, और कितने लिखूंगा, बस इस बात से डर लगता है।
- सानु कुमार | 10 दिसंबर 2022
सोचने में अब तो डर लगता है,
जितना सोचता हूं उतना खुदगर्ज लगता है।
अब लगता है, लिख रहा हूं या बस लिख ही रहा हूं,
बिना बात करके तुमसे।
शायद लिख रहा हूं पूरे बरबाद होकर फिर से,
या बस समय खराब है, या मैं खराब समय के नाम का।
या थोरी और समय का साथ चाहिए मुझको,
या बस यू ही लगता है किसी और का साथ चाहिए मुझको।
- सानु कुमार | 22 नवंबर 2022
वक़्त जो तुम्हारे साथ बिताए है,
याद आयेंगे।
थोड़े तुम, और थोड़े तुम,
दोनो पूरे के पूरे याद आयेंगे।
फिर मिलेंगे एक नए साल में,
वक़्त जो तुम्हारे साथ बिताए है,
फिरसे वाही दोहराएंगे।
थोड़े तुम, और थोड़े तुम,
दोनो पूरे के पूरे याद आयेंगे।
- सानु कुमार | 7 दिसंबर 2022